UP हाईकोर्ट ने Outsourcing Worker के बारे में महत्वपूर्ण फैसला दिया

UP हाईकोर्ट ने Outsourcing Worker के बारे में महत्वपूर्ण फैसला दिया

अगर आप किसी सरकारी विभाग में आउटसोर्सिंग या संविदाकर्मी के रूप में जॉब करते हैं तो आपके लिए एक महत्वपूर्ण जानकारी हैं. विगत 20 नवम्बर 2019 को UP हाईकोर्ट ने Outsourcing Worker के बारे में महत्वपूर्ण फैसला दिया. जिसके अनुसार माननीय कोर्ट ने यूपी सरकार से जवाबतलब करते हुए सरकारी विभाग में आउटसोर्सिंग भर्ती पर रोक लगा दी हैं. 

UP हाईकोर्ट ने Outsourcing Worker के बारे में महत्वपूर्ण फैसला 

उत्तरप्रदेश हाईकोर्ट की लखनऊ खण्डपीठ ने एक मामले की सुनवाई करते हुए पूरे प्रदेश के सरकारी विभागों में नियमित स्वीकृत पदों पर आउटसोर्सिंग से हो रही संविदा भर्तियों पर रोक लगा दी है. माननीय कोर्ट ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के उमादेवी केस के बाद सेवा प्रदाता फर्मों से किस नियम से सरकारी विभागों में संविदा भर्तियां हो रही हैं? 

कोर्ट ने यह आदेश न्यायमूर्ति मुनीस्वर नाथ भंडारी व न्यायमूर्ति विकास कुंवर श्रीवास्तव की पीठ ने याची मेसर्स आर एम एस टेक्नोसलूशन लि. की ओर से दायर याचिका पर दिए हैं. याचिकाकर्ता ने याचिका दायर कर मांग की है कि सरकार ने उसका रजिस्ट्रेशन खारिज कर दिया है, जिसे बहाल किया जाए. अदालत ने इस मुद्दे पर राज्य सरकार से जानकारी मांगी है. अदालत ने जानना चाहा कि आउटसोर्सिंग से नियमित पदों के सापेक्ष संविदा या कांट्रैक्ट पर किस तरह से भर्तियां हो रही हैं.

इसके साथ ही अदालत ने यह भी जानना चाहा कि सुप्रीम कोर्ट के उमा देवी के केस के बाद 13 वर्ष बीत चुके हैं.आगे कहा कि इस मामले में पदों को भरे जाने संबंधी सरकार की क्या नीति है. सुनवाई के समय यह बात भी आई कि आउटसोर्सिंग से भर्ती किया जाना न्यायोचित नहीं है. सरकार की ओर से बताया गया कि इस मामले में सरकार नीति बना रही है और शीघ्र ही भर्ती की नीति बन जाएगी. अदालत ने इस मामले में संज्ञान लेते हुए पूरे प्रदेश में मैनपवार सप्लाई से सरकारी दफ्तरों में भर्तियों पर रोक लगा दी है. अदालत ने एक सप्ताह में सरकार से स्पष्टीकरण मांगते हुए अगली सुनवाई 27 नवम्बर को नियत की है.

आखिर क्या है उमा देवी केस

आपकी जानकारी के लिए बता दें कि कर्नाटक राज्य बनाम उमा देवी के केस में माननीय सुप्रीम कोर्ट ने व्यवस्था दी थी कि सरकारी विभागों में बिना किसी स्वीकृत पद के बैकडोर से ,अस्थाई ,तदर्थ ,वर्कचार्ज के रूप में नियुक्ति गैर कानूनी है. कोर्ट ने कहा कि पद के बिना पहले तो काम पर लगा लिया बाद में कुछ वर्षों बाद वह व्यक्ति अनुभव के आधार पर नियमित होने की मांग करता है यह कानून की नजर में गलत है. इस प्रथा से नियमित पदों पर आने या नियुक्त होने वालों का हित प्रभावित होता है. इस केस से सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 2006 से बैक डोर एंट्री को समाप्त कर दिया था.

UP हाईकोर्ट ने Outsourcing Worker के बारे में महत्वपूर्ण फैसला दिया 



अगर ‘इंडियन स्टफिंग फेडरेशन’ की रिपोर्ट की माने तो सरकारी विभागों में 1 करोड़ 25 लाख कर्मचारी कार्यरत हैं, जिनमें 69 लाख से ज्यादा कर्मचारी ठेके या संविदा पर कार्यरत हैं. जिनका काम रेगुलर प्रकृति का हैं. इन ठेका मजदूरों या संविदाकर्मियों की हालत बेहद खराब है. इनमें ज्यादातर लोग रेगुलर कर्मचारी के बराबर काम करते हैं मगर कई दफा इनको न्यूनतम वेतन भी प्रदान नहीं किया जाता. जबकि इनकी हितों की रक्षा के लिए श्रम कानून भी बने हैं. मगर कर्मचारी अपने परिवार का पेट पाले या कोर्ट कचहरी का चक्कर लगाए. अब जब सरकारी विभागों का ही यह हाल हैं तो प्राइवेट तो भगवान भरोसे ही समझिये. 

इसके बारे में जानने के बाद कई लोगों ने यह पूछा था कि जो लोग पिछले कई वर्षों से सरकारी विभाग में आउटसोर्सिंग के माध्यम से काम कर रहे उनका जॉब पर इस आर्डर का क्या प्रभाव पड़ेगा? क्या उनको अब नौकरी से निकाल तो नहीं दिया जायेगा? मगर इसके बारे में अभी कुछ भी कहना मुश्किल हैं जब तक इस केस का फाइनल आर्डर नहीं आ जाता. ऐसे इस आर्डर से यूपी के सरकारी विभागों में संविदाकर्मियों की भर्ती में रोक के सन्दर्भ में हैं. इसलिए बाकि राज्यों में इसका अभी फिलहाल कोई प्रभाव नहीं होगा. मगर आपकी जानकारी के लिए बता दें कि कॉन्ट्रैक्ट लेबर एक्ट के अनुसार स्थाई प्रकृति के कामों में ठेका या संविदा वर्कर नहीं रखे जा सकते हैं. 

अगर आप नीचे कमेंट में लिखकर बतायेंगे तो इस केस की जानकारी आगे भी देते रहेंगे. अगर आप इसके आर्डर का कॉपी डाउनलोड करना चाहते हैं तो नीचे के लिंक को क्लिक करें. 

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