शहीदी दिवस (23 मार्च) - आइये जानते हैं भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु के बारे में

 

आज 23 मार्च को पुरे देश में शहीदी दिवस के रूप में मानते हैं. आज ही के दिन भारत के तीन महान क्रांतिकारियों भगत सिंह, सुखदेव व् राजगुरु को अंग्रेजी हकीमत ने फांसी पर चढ़ा दिया था. जिसके बाद पुरे देश में अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ बगावत फ़ैल गया. एक तरह से कहिये कि उनकी शहादत ने अंग्रेजी हुकूमत की नींव हिला कर रख दी थी. आज सुबह से ही लोग सोशल मिडिया के द्वारा भगत सिंह सुखदेव व् राजगुरु के बलिदान को याद कर रहे हैं तो कोई खुद को उनसे जुड़े किस्से और कहानियां शेयर कर रहा है. इसी संदर्भ को जारी रखते हुए, हम इस लेख के माध्यम से तीनो शहीदों के बारे में बताने की कोशिश करेंगे. उम्मीद करते हैं कि उनके बलिदान की कहानी से सीख लेने की जरुरत है, तो आइये जानते हैं.

भगत सिंह - Bhagat Singh

भगत सिंह संधु का जन्म 27 सितंबर 1907 को हुआ था. उनके पिता श्री सरदार किशन सिंह और माता विद्यावती कौर थी . भगत सिंह एक जट्ट सिक्ख परिवार से थे. भगत सिंह ने नेशनल कॉलेज, लाहौर की बधाई के दौरान ही भारत के आजादी के लिए नौजवान भारत सभा की स्थापना की थी. "नौजवान भारत सभा" जो कि अभी भारत कम्युनिष्ट पार्टी (मार्क्सवादी) का युवा संगठन डीवाईएफवाई के नाम से जाना जाता है.
 

देश के अपमान का बदला उन्हें अत्याचारी अंग्रेजों से लेना है

13 अप्रैल 1919 में रॉलेट एक्ट के विरोध में संपूर्ण भारत में जगह-जगह प्रदर्शन हो रहे थे. इसी दौरान 13 अप्रैल 1919 को अमृतसर के जलियांवाला बाग में शांतिपूर्ण सभा पर जनरल डायर ने अंधाधुन गोलियां चलाकर हजारों निहथ्थों लोगों को भून दिया. इस नरसंहार ने पुरे देश को हिला कर रख दिया. इस कांड का समाचार सुनकर भगत सिंह लाहौर से अमृतसर पहुंचे और जलियांवाला बाग की मिट्टी को एक बोतल में भरकर अपने पास रख ली ताकि उन्हें याद रहे कि देश के अपमान का बदला उन्हें अत्याचारी अंग्रेजों से लेना है. 

देश के स्वतंत्रता संग्राम में कूद गए

जब सन 1920 ई. में महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन की घोषणा की, तब भगत सिंह ने बीच में ही अपनी पढ़ाई छोड़ दी और देश के स्वतंत्रता संग्राम में कूद गए. इसके बाद जब लाला लाजपत राय ने लाहौर में नेशनल कॉलेज की स्थापना की तो भगत सिंह भी इसमें दाखिल हो गए  और इसी कॉलेज में वे यशपाल, सुखदेव, तीर्थराम एंव झंडासिंह जैसे क्रांतिकारियों के संपर्क में आए थे.
 

भगत सिंह ने "इंकलाब-जिन्दाबाद, साम्राज्यवाद-मुर्दाबाद." का नारा लगाया

काकोरी काण्ड में राम प्रसाद 'बिस्मिल' सहित 4 क्रान्तिकारियों को फांसी व 16 अन्य को कारावास की सजाओं से भगत सिंह इतने अधिक उद्विग्न हुए कि पण्डित चन्द्रशेखर आजाद के साथ उनकी पार्टी हिन्दुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसिएशन से जुड गये. इसके बाद उसे एक नया नाम दिया हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन. इस संगठन का उद्देश्य सेवा, त्याग और पीड़ा झेल सकने वाले नवयुवक तैयार करना था. भगत सिंह ने राजगुरु के साथ मिलकर 17 दिसम्बर 1928 को लाहौर में सहायक पुलिस अधीक्षक रहे अंग्रेज़ अधिकारी जे.पी. सांडर्स को मारा था. इस कार्रवाई में क्रान्तिकारी चन्द्रशेखर आज़ाद ने उनकी पूरी सहायता की थी. क्रान्तिकारी साथी बटुकेश्वर दत्त के साथ मिलकर भगत सिंह ने वर्तमान नई दिल्ली स्थित ब्रिटिश भारत की तत्कालीन सेण्ट्रल एसेम्बली के सभागार संसद भवन में 8 अप्रैल 1929 को अंग्रेज़ सरकार को जगाने के लिये बम फेंके थे. बम फटने के बाद उन्होंने "इंकलाब-जिन्दाबाद, साम्राज्यवाद-मुर्दाबाद." का नारा लगाया और अपने साथ लाये हुए पर्चे हवा में उछाल दिये थे. फिर बाद में वहीं पर दोनों ने अपनी गिरफ्तारी भी दी.
 

भगत सिंह ने मौत की सजा मिलने के बाद भी माफीनामा लिखने से साफ मना कर दिया

जिसेक बाद ब्रिटिश हुकूमत ने भगत सिंह को फांसी को सजा सुनाई थी. भगत सिंह ने मौत की सजा मिलने के बाद भी माफीनामा लिखने से साफ मना कर दिया था. बाद में 23 मार्च 1931 को शाम करीब 7 बजकर 33 मिनट पर भगत सिंह तथा इनके दो साथियों सुखदेव व राजगुरु को गुपचुप तरीके से फांसी दे दी गई थी.  

भगत सिंह के अनमोल विचार  Bhagat Singh Quotes in Hindi

  • प्रेमी, पागल, और कवी एक ही चीज से बने होते हैं.
  • राख का हर एक कण मेरी गर्मी से गतिमान है मैं एक ऐसा पागल हूँ जो जेल में भी आज़ाद है.
  • आम तौर पर लोग चीजें जैसी हैं उसके आदि हो जाते हैं और बदलाव के विचार से ही कांपने लगते हैं. हमें इसी निष्क्रियता की भावना को क्रांतिकारी भावना से बदलने की ज़रुरत है.
  • जो व्यक्ति भी विकास के लिए खड़ा है उसे हर एक रूढ़िवादी चीज की आलोचना करनी होगी , उसमे अविश्वास करना होगा तथा उसे चुनौती देनी होगी.
  • व्यक्तियो को कुचल कर, वे विचारों को नहीं मार सकते.

सुखदेव- Sukhdev

सुखदेव का पूरा नाम सुखदेव थापर था. उनका जन्म पंजाब के शहर लायलपुर में श्रीयुत् रामलाल थापर व श्रीमती रल्ली देवी के घर  15 मई 1907 को हुआ था. उनके जन्म से तीन माह पूर्व ही पिता का स्वर्गवास हो जाने के कारण इनके ताऊ अचिन्तराम ने इनका पालन पोषण करने में इनकी माता को पूर्ण सहयोग किया. सुखदेव की तायी जी ने भी इन्हें अपने पुत्र की तरह पाला था.

सुखदेव भी मात्र 23 वर्ष की आयु में शहीद हो गये

लाला लाजपत राय की मौत का बदला लेने के लिए भगत सिंह और राजगुरु के साथ योजना बनाकर साण्डर्स का वध किया था. जिसके बाद उनको जेल में डाल दिया गया. जिसके बाद  23 मार्च 1931 को सायंकाल 7:33 बजे सुखदेव, राजगुरु और भगत सिंह तीनों को लाहौर सेण्ट्रल जेल में फांसी पर लटका कर मार डाला गया. इस प्रकार भगत सिंह तथा राजगुरु के साथ सुखदेव भी मात्र 23 वर्ष की आयु में शहीद हो गये.


राजगुरु - Rajguru

राजगुरु का पूरा नाम शिवराम हरि राजगुरु था. उनका जन्म सन् 1907 में पुणे जिला के खेडा गाँव में हुआ था. मात्र 6 वर्ष की आयु में पिता का निधन हो जाने से बहुत छोटी उम्र में ही ये वाराणसी विद्याध्ययन करने एवं संस्कृत सीखने आ गये थे. 

राजगुरु एक अच्छे निशानेबाज भी थे

राजगुरु को व्यायाम का बहुत शौक था. वे छत्रपति शिवाजी की छापामार युद्ध-शैली के बहुत बड़े प्रशंसक थे. वाराणसी में विद्याध्ययन करते हुए राजगुरु का सम्पर्क अनेक क्रान्तिकारियों से हुआ. राजगुरु चन्द्रशेखर आजाद से इतने अधिक प्रभावित हुए कि उनकी पार्टी हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी से तत्काल जुड़ गये. राजगुरु एक अच्छे निशानेबाज भी थे और साण्डर्स का वध करने में इन्होंने भगत सिंह तथा सुखदेव का पूरा साथ दिया था. जबकि चन्द्रशेखर आज़ाद ने छाया की भाँति इन तीनों को सामरिक सुरक्षा प्रदान की थी.

23 मार्च 1931 को इन्होंने भगत सिंह तथा सुखदेव के साथ लाहौर सेण्ट्रल जेल में फांसी के तख्ते पर झूल कर अपने नाम को हिन्दुस्तान के अमर शहीदों की सूची में अहमियत के साथ दर्ज करा दिया.

(उपरोक्त लेख विभिन्न माध्यमों से जानकारी लेकर लिखी गई है.)

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